कांग्रेस कैसे लागू करेगी उदयपुर डिक्लेरेशन: एक परिवार से 3-3 दावेदार, टिकट न दे तो हार का खतरा

क्या कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत 5 राज्यों के चुनाव में कांग्रेस उदयपुर डिक्लेरेशन को पूरी तरह लागू कर पाएगी? यह सवाल इसलिए भी, क्योंकि कांग्रेस के भीतर कई ऐसे परिवार हैं, जहां से 3-3 लोग टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक जिताऊ उम्मीदवार का हवाला देकर यह सभी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं.  इन नेताओं का तर्क है कि अगर सीट जीतना है, तो हमें टिकट देना ही पड़ेगा. मध्य प्रदेश की तो कई सीटें ऐसी है, जहां से पिछले 10 सालों से एक ही परिवार के 2 से ज्यादा लोग लगातार चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में यहां नया उम्मीदवार खोजना भी कांग्रेस के लिए आसान नहीं है. 2022 में कांग्रेस ने उदयपुर डिक्लेरेशन में ऐलान किया था कि एक चुनाव में एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाएगा. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मल्लिकार्जुन ने घोषणा पत्र में उदयपुर डिक्लेरेशन को सख्ती से लागू करने की बात कही थी.  खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला बड़ा मौका है, जब कांग्रेस के उदयपुर डिक्लेरेशन का लिटमस टेस्ट होना है, क्योंकि पहली बार एक साथ 5 राज्यों के चुनाव हो रहे हैं, जहां विधानसभा की कुल 677 सीटें हैं. कांग्रेस के उदयपुर डिक्लेरेशन में क्या था?2022 में यूपी, पंजाब समेत 5 राज्यों में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस ने राजस्थान के उदयपुर में नवचिंतन संकल्प शिविर का आयोजन किया. चिंतन करने के बाद कांग्रेस ने 17 पन्नों का एक घोषणा पत्र जारी किया. इसे पार्टी ने उदयपुर डिक्लेरेशन का नाम दिया.  उदयपुर डिक्लेरेशन में कांग्रेस ने राजनीतिक और सांगठनिक फेरबदल के बारे में जानकारी दी. पार्टी ने कहा कि संगठन में 50 प्रतिशत पद 50 साल से कम उम्र के नेताओं को दी जाएगी. इसके अलावा वन पोस्ट-वन पर्सन का फॉर्मूला भी लागू किया.  कांग्रेस ने घोषणा किया कि एक चुनाव में एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाएग. हालांकि, गांधी परिवार पर इस फॉर्मूले को लागू नहीं करने की बात भी कही.  पार्टी ने इसके साथ ही संगठन में पद पर आसीन लोगों को कूलिंग पीरियड में भी भेजने की घोषणा की. ब्लॉक से लेकर राज्य स्तर पर पद भरने के साथ ही कांग्रेस सभी राज्यों में पॉलिटिकल एक्सपर्ट कमेटी बनाने का ऐलान किया था.  एक परिवार में एक से ज्यादा टिकट के दावेदार, लिस्ट1.दिग्गी परिवार- मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह परिवार से 3 लोग इस बार भी टिकट के दावेदार हैं. पहला नाम दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह का है. लक्ष्मण चाचौड़ा से अभी विधायक भी हैं. इस बार भी यहां से उनकी दावेदारी सबसे मजबूत है. लक्ष्मण ने पिछले चुनाव में बीजेपी के ममता मीणा को हराया था. दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं. जयवर्धन कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. जयवर्धन पिता के पारंपरिक सीट राघौगढ़ से विधायक हैं. 2013 में पहली बार यहां से चुनाव लड़े थे. इस बार भी इस सीट पर उनकी दावेदारी सबसे मजबूत है. दिग्विजय सिंह के भतीजे  प्रियव्रत सिंह टिकट के बड़े दावेदार हैं. प्रियव्रत अभी खिलचीपुर से विधायक हैं और कमलनाथ सरकार में उर्जा मंत्री रह चुके हैं. जन आक्रोश यात्रा का उन्होंने खिलचीपुर में नेतृत्व किया था.  चुनाव लड़ने की चर्चा दिग्विजय सिंह की भी हो रही है. कहा जा रहा है कि दिग्गी राजा को भी पार्टी किसी कठिन सीट से चुनाव लड़वा सकती है. 2. भूरिया परिवार- मध्य प्रदेश कांग्रेस कैंपेन कमेटी के चेयरमैन कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया भी टिकट के दावेदार हैं. विक्रांत अभी मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं. कांतिलाल भूरिया झाबुआ सीट से विधायक हैं. विक्रांत भी 2018 में झाबुआ से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने चुनाव हरा दिया था. 2018 में भूरिया परिवार के 2 लोगों को कांग्रेस से टिकट मिला था. विक्रांत को झाबुआ से तो कांतिलाल की भतीजी कलावती को अलीराजपुर के जोबट से टिकट दिया गया था.  भूरिया परिवार इस बार भी कम से कम 2 टिकट कांग्रेस हाईकमान से चाह रहा है. कांतिलाल भूरिया कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. रतलाम, झाबुआ, धार और अलीराजपुर में उनकी मजबूत पकड़ है. इन इलाकों में विधानसभा की करीब 20 सीटें हैं.  3. यादव परिवार- पूर्व डिप्टी सीएम सुभाष यादव के दोनों बेटे अभी राजनीति में सक्रिय हैं. छोटे बेटे सचिन यादव कसरावद सीट से विधायक भी हैं. बड़े बेटे अरुण कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 2018 में अरुण बुधनी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ चुनाव भी लड़े थे, लेकिन जीत नहीं पाए.  अरुण के भी चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है. अरुण निमाड़ के किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. सचिन कसरावद से ही मैदान में उतरेंगे. किसानों के बीच यादव परिवार का मजबूत दबदबा है. मध्य प्रदेश में सुभाष यादव की पहचान सहकारिता के बड़े नेता के तौर पर थी.  अरुण यादव मनमोहन सरकार में मंत्री रह चुके हैं, जबकि सचिन मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं.  4. सोढ़ी परिवार- छत्तीसगढ़ के सोढ़ी परिवार में भी 2 लोग कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कद्दावर नेता मानिकराम सोढ़ी के बड़े शंकर सोढ़ी कोंडागांव और छोटे बेटे  सोढ़ी ने जगदलपुर से टिकट की मांग की है.  जगदलपुर सीट से कांग्रेस के रेखाचंद जैन विधायक हैं. शंकर सोढ़ी ने कोंडागांव सीट से दावेदारी पेश की है. वर्तमान मे इस सीट से मंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम विधायक हैं. जगदलपुर और बस्तर के आदिवासी इलाकों में सोढ़ी परिवार का मजबूत दबदबा है. उनकी बहन हाल ही में बीजेपी में शामिल हुई हैं. 5. कर्मा परिवार- छत्तीसगढ़ के पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा परिवार से भी 2 लोग टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा और उनके बेटे छविंद्र कर्मा अपने लिए टिकट मांग

कांग्रेस कैसे लागू करेगी उदयपुर डिक्लेरेशन: एक परिवार से 3-3 दावेदार, टिकट न दे तो हार का खतरा

क्या कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश समेत 5 राज्यों के चुनाव में कांग्रेस उदयपुर डिक्लेरेशन को पूरी तरह लागू कर पाएगी? यह सवाल इसलिए भी, क्योंकि कांग्रेस के भीतर कई ऐसे परिवार हैं, जहां से 3-3 लोग टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक जिताऊ उम्मीदवार का हवाला देकर यह सभी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. 

इन नेताओं का तर्क है कि अगर सीट जीतना है, तो हमें टिकट देना ही पड़ेगा. मध्य प्रदेश की तो कई सीटें ऐसी है, जहां से पिछले 10 सालों से एक ही परिवार के 2 से ज्यादा लोग लगातार चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में यहां नया उम्मीदवार खोजना भी कांग्रेस के लिए आसान नहीं है.

2022 में कांग्रेस ने उदयपुर डिक्लेरेशन में ऐलान किया था कि एक चुनाव में एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाएगा. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में मल्लिकार्जुन ने घोषणा पत्र में उदयपुर डिक्लेरेशन को सख्ती से लागू करने की बात कही थी. 

खरगे के अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला बड़ा मौका है, जब कांग्रेस के उदयपुर डिक्लेरेशन का लिटमस टेस्ट होना है, क्योंकि पहली बार एक साथ 5 राज्यों के चुनाव हो रहे हैं, जहां विधानसभा की कुल 677 सीटें हैं.

कांग्रेस के उदयपुर डिक्लेरेशन में क्या था?
2022 में यूपी, पंजाब समेत 5 राज्यों में बुरी तरह हारने के बाद कांग्रेस ने राजस्थान के उदयपुर में नवचिंतन संकल्प शिविर का आयोजन किया. चिंतन करने के बाद कांग्रेस ने 17 पन्नों का एक घोषणा पत्र जारी किया. इसे पार्टी ने उदयपुर डिक्लेरेशन का नाम दिया. 

उदयपुर डिक्लेरेशन में कांग्रेस ने राजनीतिक और सांगठनिक फेरबदल के बारे में जानकारी दी. पार्टी ने कहा कि संगठन में 50 प्रतिशत पद 50 साल से कम उम्र के नेताओं को दी जाएगी. इसके अलावा वन पोस्ट-वन पर्सन का फॉर्मूला भी लागू किया. 

कांग्रेस ने घोषणा किया कि एक चुनाव में एक परिवार से एक ही व्यक्ति को टिकट दिया जाएग. हालांकि, गांधी परिवार पर इस फॉर्मूले को लागू नहीं करने की बात भी कही. 

पार्टी ने इसके साथ ही संगठन में पद पर आसीन लोगों को कूलिंग पीरियड में भी भेजने की घोषणा की. ब्लॉक से लेकर राज्य स्तर पर पद भरने के साथ ही कांग्रेस सभी राज्यों में पॉलिटिकल एक्सपर्ट कमेटी बनाने का ऐलान किया था. 

एक परिवार में एक से ज्यादा टिकट के दावेदार, लिस्ट
1.दिग्गी परिवार- मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह परिवार से 3 लोग इस बार भी टिकट के दावेदार हैं. पहला नाम दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह का है. लक्ष्मण चाचौड़ा से अभी विधायक भी हैं. इस बार भी यहां से उनकी दावेदारी सबसे मजबूत है. लक्ष्मण ने पिछले चुनाव में बीजेपी के ममता मीणा को हराया था.

दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह भी टिकट के प्रबल दावेदार हैं. जयवर्धन कमलनाथ सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. जयवर्धन पिता के पारंपरिक सीट राघौगढ़ से विधायक हैं. 2013 में पहली बार यहां से चुनाव लड़े थे. इस बार भी इस सीट पर उनकी दावेदारी सबसे मजबूत है.

दिग्विजय सिंह के भतीजे  प्रियव्रत सिंह टिकट के बड़े दावेदार हैं. प्रियव्रत अभी खिलचीपुर से विधायक हैं और कमलनाथ सरकार में उर्जा मंत्री रह चुके हैं. जन आक्रोश यात्रा का उन्होंने खिलचीपुर में नेतृत्व किया था. 

चुनाव लड़ने की चर्चा दिग्विजय सिंह की भी हो रही है. कहा जा रहा है कि दिग्गी राजा को भी पार्टी किसी कठिन सीट से चुनाव लड़वा सकती है.

2. भूरिया परिवार- मध्य प्रदेश कांग्रेस कैंपेन कमेटी के चेयरमैन कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे विक्रांत भूरिया भी टिकट के दावेदार हैं. विक्रांत अभी मध्य प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं. कांतिलाल भूरिया झाबुआ सीट से विधायक हैं.

विक्रांत भी 2018 में झाबुआ से चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने चुनाव हरा दिया था. 2018 में भूरिया परिवार के 2 लोगों को कांग्रेस से टिकट मिला था. विक्रांत को झाबुआ से तो कांतिलाल की भतीजी कलावती को अलीराजपुर के जोबट से टिकट दिया गया था. 

भूरिया परिवार इस बार भी कम से कम 2 टिकट कांग्रेस हाईकमान से चाह रहा है. कांतिलाल भूरिया कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं. रतलाम, झाबुआ, धार और अलीराजपुर में उनकी मजबूत पकड़ है. इन इलाकों में विधानसभा की करीब 20 सीटें हैं. 

3. यादव परिवार- पूर्व डिप्टी सीएम सुभाष यादव के दोनों बेटे अभी राजनीति में सक्रिय हैं. छोटे बेटे सचिन यादव कसरावद सीट से विधायक भी हैं. बड़े बेटे अरुण कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 2018 में अरुण बुधनी से शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ चुनाव भी लड़े थे, लेकिन जीत नहीं पाए. 

अरुण के भी चुनाव लड़ने की बात कही जा रही है. अरुण निमाड़ के किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. सचिन कसरावद से ही मैदान में उतरेंगे. किसानों के बीच यादव परिवार का मजबूत दबदबा है. मध्य प्रदेश में सुभाष यादव की पहचान सहकारिता के बड़े नेता के तौर पर थी. 

अरुण यादव मनमोहन सरकार में मंत्री रह चुके हैं, जबकि सचिन मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री रहे हैं. 

4. सोढ़ी परिवार- छत्तीसगढ़ के सोढ़ी परिवार में भी 2 लोग कांग्रेस से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कद्दावर नेता मानिकराम सोढ़ी के बड़े शंकर सोढ़ी कोंडागांव और छोटे बेटे  सोढ़ी ने जगदलपुर से टिकट की मांग की है. 

जगदलपुर सीट से कांग्रेस के रेखाचंद जैन विधायक हैं. शंकर सोढ़ी ने कोंडागांव सीट से दावेदारी पेश की है. वर्तमान मे इस सीट से मंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम विधायक हैं.

जगदलपुर और बस्तर के आदिवासी इलाकों में सोढ़ी परिवार का मजबूत दबदबा है. उनकी बहन हाल ही में बीजेपी में शामिल हुई हैं.

5. कर्मा परिवार- छत्तीसगढ़ के पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा परिवार से भी 2 लोग टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा और उनके बेटे छविंद्र कर्मा अपने लिए टिकट मांग रहे हैं. देवती कर्मा अभी दंतेवाड़ा सीट से विधायक भी हैं.

दंतेवाड़ा में कर्मा परिवार का मजबूत दबदबा रहा है. महेंद्र कर्मा संयुक्त मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार में मंत्री थे. 2013 में झीरम घाटी में प्रचार के दौरान नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी थी. कर्मा की विरासत को उनकी पत्नी और बेटे संभाल रहे हैं.

6. मेघवाल परिवार- अशोक गहलोत सरकार में मंत्री गोविंद राम मेघवाल परिवार के भी 2 लोग विधानसभा चुनाव में टिकट की दावेदारी कर रहे हैं. गोविंद राम मेघवाल अपने साथ-साथ बेटी सरिता चौहान को भी टिकट दिलाने की जुगत में जुटे हैं.

सरिता पंचायत समिति का चुनाव जीत चुकी हैं. मेघवाल सरिता को बीकानेर के किसी सीट से टिकट दिलाने की पैरवी कर रहे हैं. बीकानेर में मेघवाल का राजनीतिक दबदबा है. उनके परिवार के 3 सदस्य यहां पंचायत समिति के सदस्य हैं.

7. जाहिदा परिवार- राजस्थान सरकार में मंत्री जाहिदा खान अपने साथ-साथ परिवार के एक और व्यक्ति को टिकट दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही हैं. जाहिदा की बेटी शहनाज और बेटे साजिद राजनीति में सक्रिय हैं. 

जाहिदा भरतपुर से कामां सीट से अभी विधायक हैं. 2018 में उन्होंने बीजेपी के जवाहर सिंह को करीब 40 हजार वोटों से हराया था. हालांकि, भरतपुर में कांग्रेस का दबदबा ज्यादा है, इसलिए शायद ही जाहिदा परिवार के 2 लोगों को टिकट मिल पाए.

कर्नाटक में नहीं लागू हुआ था यह फॉर्मूला
कांग्रेस के एक परिवार से एक व्यक्ति को टिकट देने का फॉर्मूला कर्नाटक में लागू नहीं हुआ था. पार्टी ने बेंगलुरु के बीटीएम लेआउट से रामालिंगा रेड्डी और जयनगर सीट से उनकी बेटी सौम्या को टिकट दिया था. 

इसी तरह केएच मुनियप्पा को देवनहल्ली और उनकी बेटी रूपकला को कोलार गोल्ड फील्ड से उम्मीदवार बनाया गया था. इसके अलावा एम कृष्णप्पा और उनके बेटे प्रिय कृष्ण को भी कांग्रेस ने टिकट दिया था. यानी वन फैमिली, वन टिकट का फॉर्मूला भी कांग्रेस अब तक लागू नहीं कर पाई है. 

बीजेपी ने दिए एक परिवार से 2-2 लोगों को टिकट
भारतीय जनता पार्टी ने टिकट बंटवारे में परिवारवाद को जमकर तरजीह दी है. बीजेपी ने दिलीप सिंह जूदेव और रमन सिंह परिवार के 2-2 लोगों को टिकट दिया है. 
जूदेव परिवार से संयोगिता और प्रबल जबकि रमन परिवार से खुद रमन सिंह और उनके भांजे विक्रांत को टिकट दिया गया है.

बीजेपी सूची के मुताबिक चंद्रपुर से दिलीप सिंह जूदेव की बहु संयोगिता और कोटा से उनके छोटे बेटे प्रबल प्रताप को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है. इसी तरह रमन सिंह को राजनांदगांव और उनके भांजे विक्रांत को खैरागढ़ सीट से टिकट दिया गया है.

वहीं कैलाश विजयवर्गीय को भी अपने बेटे को टिकट मिलने की उम्मीद है. कैलाश को पार्टी ने इंदौर-1 नंबर सीट से उम्मीदवार बनाया है. उनके बेटे आकाश इंदौर-3 से अभी विधायक हैं.

कांग्रेस में यहां भी उदयपुर डिक्लेरेशन लागू नहीं
एक परिवार, एक टिकट ही नहीं, कांग्रेस कई और मोर्चे पर भी अब तक उदयपुर डिक्लेरेशन लागू करने में फेल रही है. कांग्रेस ने पार्टी के डिसीजन मेकिंग में 50 साल से कम उम्र के युवाओं को 50 प्रतिशत भागीदारी देने की घोषणा की थी, लेकिन कांग्रेस इसे भी लागू करने में अब तक विफल साबित हुई है.

देश में कांग्रेस के अभी 4 मुख्यमंत्री हैं, जिनकी औसत उम्र  66 साल से अधिक है. कांग्रेस के एक भी मुख्यमंत्री 50 साल से कम उम्र के नहीं हैं. इसी तरह संगठन के भी 5 बड़े पद पर एक भी नेता 50 साल से कम उम्र के नहीं हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे खुद 81 साल के हैं. 

इतना ही नहीं, कांग्रेस ने उदयपुर में वन पोस्ट, वन पर्सन फॉर्मूला लागू करने की बात कही थी. इस फॉर्मूला को खुद मल्लिकार्जुन खरगे नहीं मान रहे हैं. खरगे पिछले एक साल से अध्यक्ष के साथ-साथ राज्यसभा में भी नेता प्रतिपक्ष हैं.