डिजिटल दुनिया में हमारी यादें: मौत के बाद क्या होता है?

आजकल हमारी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा डिजिटल हो गया है। हमारी तस्वीरें, सोशल मीडिया पोस्ट, कहानियाँ, कला और संगीत—ये सब ऑनलाइन मौजूद हैं।

डिजिटल दुनिया में हमारी यादें: मौत के बाद क्या होता है?

आजकल हमारी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा डिजिटल हो गया है। हमारी तस्वीरें, सोशल मीडिया पोस्ट, कहानियाँ, कला और संगीत—ये सब ऑनलाइन मौजूद हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि आपकी मौत के बाद इनका क्या होगा? इसी सवाल का जवाब देने के लिए CU बोल्डर ने डिजिटल लेगेसी क्लिनिक शुरू की है।

क्लिनिक का मकसद
इस क्लिनिक के संस्थापक, जेड ब्रूबेकर, जो इंफॉर्मेशन साइंस के प्रोफेसर हैं, कहते हैं, "जब कोई मृत्यु को प्राप्त होता है या अपने किसी प्रियजन को खोने के बाद उनके डिजिटल खातों को संभालता है, तो यह एक मुश्किल समय हो सकता है।"

यह क्लिनिक लोगों को यह समझने में मदद करता है कि उनके डिजिटल अकाउंट और डेटा का क्या किया जाए। यह मुफ़्त सेवा है, जिसमें इंफॉर्मेशन साइंस के छात्र लोगों की मदद करते हैं।

क्यों है ज़रूरी?
औसत इंटरनेट यूज़र के पास लगभग 191 अकाउंट होते हैं। इनमें गूगल ड्राइव पर फोटो और वीडियो, फेसबुक प्रोफाइल, पिनटेरेस्ट पर रेसिपी, और एन्सेस्ट्री.कॉम पर वंश वृक्ष जैसे महत्वपूर्ण डेटा शामिल हैं। लेकिन एक शोध के मुताबिक, केवल 13% प्लेटफॉर्म ही उपयोगकर्ताओं की मृत्यु के बाद के लिए कोई खास सुविधा देते हैं।

ब्रूबेकर बताते हैं कि अगर इस पर पहले से योजना न बनाई जाए तो:

  • मृत व्यक्ति के फेसबुक प्रोफाइल पर उनके जन्मदिन की याद दिलाने वाले नोटिफिकेशन आते रहते हैं, जिससे परिवारजनों को तकलीफ होती है।
  • पासवर्ड के बिना परिवारवाले गूगल या आईक्लाउड से तस्वीरें और वीडियो नहीं निकाल पाते।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया गया महत्वपूर्ण काम (जैसे कला, कहानियाँ, म्यूजिक) हमेशा के लिए खो सकता है।

"अगर दादी माँ का सामान व्यवस्थित करना हो तो आपको पता होता है कि अटारी (अटिक) कहाँ है और कब खत्म होती है। लेकिन डिजिटल डेटा अनंत है। इसमें क्या ज़रूरी है और क्या नहीं, यह समझना मुश्किल हो सकता है," ब्रूबेकर कहते हैं।

समस्या से कैसे निपटें?
ब्रूबेकर ने महसूस किया कि इस विषय पर काम करने वाला कोई संगठन नहीं है, इसलिए उन्होंने यह क्लिनिक शुरू की। इस क्लिनिक में छात्र संवेदनशीलता की ट्रेनिंग लेते हैं, वकीलों से परामर्श करते हैं और अलग-अलग प्लेटफॉर्म की तकनीकी जानकारी जुटाते हैं।

क्लिनिक ने अब तक कई मामलों में मदद की है।

  • एक विधवा को उसके पति का कैंसर से लड़ने पर लिखा ब्लॉग संरक्षित करने में मदद की।
  • एक माँ को अपनी बेटी के फेसबुक स्मृति अकाउंट से जुड़े रहने में मदद की।

डिजिटल धरोहर को सहेजें
क्लिनिक में काम करने वाले छात्रों का कहना है कि इससे उन्हें अपनी डिजिटल ज़िंदगी पर भी सोचने का मौका मिला। क्या वे अपनी इंस्टाग्राम प्रोफाइल स्मृति के रूप में रखना चाहेंगे? परिवार में कौन उनके डिजिटल डेटा को संभालेगा?

ब्रूबेकर कहते हैं कि हमारी डिजिटल यादें—जैसे शादी पर मिली बधाई या किसी प्रियजन के साथ किए गए टेक्स्ट मैसेज—बहुत कीमती हैं। "अगर ये खो गए, तो यह एक बड़ी त्रासदी होगी। हमारा काम यह सुनिश्चित करना है कि ऐसा न हो।"

पंकज शर्मा