छठ महापर्व पर शेखपुरा का दालकुआँ बना श्रद्धा का केंद्र, पवित्र जल से तैयार होता है खरना का प्रसाद

शेखपुरा जिले का दालकुआँ छठ महापर्व के दौरान आस्था का केंद्र बन जाता है। लोकपरंपरा के अनुसार, छठ पूजा के खरना का प्रसाद यहीं के पवित्र जल से तैयार किया जाता है, जिससे इस स्थल का धार्मिक महत्व और बढ़ जाता है।

छठ महापर्व पर शेखपुरा का दालकुआँ बना श्रद्धा का केंद्र, पवित्र जल से तैयार होता है खरना का प्रसाद

लोकआस्था के महापर्व छठ का उल्लास पूरे बिहार में अपने चरम पर है। घर-घर में छठ मइया के गीत गूंज रहे हैं और घाटों पर तैयारियां जोरों पर हैं। इसी बीच शेखपुरा जिले के नगर परिषद क्षेत्र स्थित दालकुआँ का धार्मिक महत्व एक बार फिर चर्चा में है। इस प्राचीन स्थल का जल छठ पूजा के खरना (लोहंडा) के प्रसाद निर्माण में विशेष रूप से उपयोग किया जाता है।

दालकुआँ का यह कुआँ अत्यंत प्राचीन और पवित्र माना जाता है। परंपरा के अनुसार, छठ पूजा के दूसरे दिन यानी खरना के दिन, श्रद्धालु इसी कुएँ से जल लेकर घर लौटते हैं और उसी जल से खरना का प्रसाद बनाते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पवित्र जल से बना प्रसाद छठ मइया को अर्पित करने से पूजा पूर्ण मानी जाती है और परिवार में सुख, समृद्धि तथा स्वास्थ्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

छठ के अवसर पर सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ दालकुआँ परिसर में उमड़ पड़ती है। महिलाएँ और पुरुष बाल्टी, कलसी, तसला तथा अन्य पात्र लेकर श्रद्धा और उत्साह के साथ जल भरते हैं। उनके चेहरों पर भक्ति और संतोष का भाव साफ झलकता है।

एक श्रद्धालु सरस्वती देवी बताती हैं—

“हम हर साल यहीं से जल लाते हैं और उसी से खरना का प्रसाद बनाते हैं। यह जल पवित्र माना जाता है, इसी कारण पूजा तभी पूर्ण होती है जब दालकुआँ का जल उपयोग किया जाए।”

जानकारों के अनुसार, शेखपुरा नगर परिषद क्षेत्र की लगभग आधी आबादी हर साल छठ पूजा में दालकुआँ के जल का ही उपयोग करती है। वर्षों से चली आ रही इस परंपरा ने इस स्थल को लोकआस्था का प्रतीक बना दिया है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि दालकुआँ का इतिहास सैकड़ों वर्षों पुराना है। इसे उस समय का प्रतीक माना जाता है जब छठ पर्व ने लोकजीवन में अपनी गहरी जड़ें जमानी शुरू की थीं। कई बुजुर्गों का कहना है कि यह कुआँ कभी सूखता नहीं और इसका जल सालभर स्वच्छ एवं मीठा बना रहता है, जो इसे और भी पवित्र बनाता है।

लोक संस्कृति विशेषज्ञों का मानना है कि दालकुआँ केवल एक जलस्रोत नहीं, बल्कि छठ महापर्व की परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यह उस सांस्कृतिक एकता का प्रतिनिधित्व करता है जिसमें प्रकृति, आस्था और सामूहिकता का अद्भुत संगम देखने को मिलता है।

हर साल की तरह इस वर्ष भी छठ पर्व के अवसर पर दालकुआँ परिसर में सुरक्षा और सफाई की विशेष व्यवस्था की गई है। नगर परिषद और जिला प्रशासन द्वारा स्थल पर रोशनी, जल निकासी, और भक्तों की सुविधा के लिए अस्थायी शेड की व्यवस्था की गई है ताकि श्रद्धालु बिना किसी असुविधा के पूजा की तैयारियाँ पूरी कर सकें।

दालकुआँ, जो कभी सिर्फ एक साधारण जलकुंड था, आज बिहार में लोकआस्था के प्रतीक स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इसकी पवित्रता और परंपरा ने इसे छठ पूजा का अभिन्न हिस्सा बना दिया है, जहाँ हर साल आस्था का सागर उमड़ता है और श्रद्धा का प्रकाश पूरे क्षेत्र को आलोकित कर देता है।