दरभंगा की जीविका दीदियों कर रहीं मछलीपालन
जिले के बघेला पंचायत की जीविका दीदियों ने मछलीपालन के ज़रिए न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है, बल्कि अन्य महिलाओं को भी रोजगार प्रदान किया है।
रंपरागत रूप से पोखर, पान और मखाना के लिए प्रसिद्ध दरभंगा जिला अब महिलाओं की मत्स्य पालन में बढ़ती भागीदारी के लिए भी चर्चा में है। जिले के अलीनगर प्रखंड के बघेला पंचायत की जीविका दीदियों ने मछलीपालन के ज़रिए न केवल अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है, बल्कि अन्य महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ने का सराहनीय कार्य कर रही हैं।
बघेला मत्स्य उत्पादक समूह की सात जीविका दीदियाँ मिलकर तालाबों में मछलीपालन कर रही हैं। इन महिलाओं ने इस क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है और आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है।
शंकर दयाल यादव, जीविका कम्युनिटी कोऑर्डिनेटर, ने बताया कि हाल ही में तैयार हुई मछलियों का अवलोकन किया गया और विपणन प्रक्रिया की सूक्ष्म निगरानी की गई।
उन्होंने मछली निकालने, तौल, ग्रेडिंग, पैकिंग, और बाजार भेजने की सभी प्रक्रियाओं का निरीक्षण किया तथा दीदियों को आवश्यक सलाह भी दी। शंकर यादव ने कहा कि "इस बार उत्पादन पहले की तुलना में बेहतर हुआ है और बाजार में भी मांग मजबूत बनी हुई है।"
उन्होंने समूह को प्रोत्साहित करते हुए तालाब की नियमित सफाई, समय पर दवा छिड़काव, और विपणन में पारदर्शिता बनाए रखने के निर्देश दिए। इससे मछलियों का स्वास्थ्य बेहतर होगा और आमदनी में वृद्धि संभव हो सकेगी।
अशोक ठाकुर, माइक्रोसॉफ्ट मत्स्य पालन सलाहकार, ने बताया कि दरभंगा जिले में मछलीपालन अब जीविका दीदियों की आजीविका का मजबूत साधन बन चुका है। उन्होंने कहा कि "हम उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और आवश्यक उपकरण प्रदान कर स्वरोजगार से जोड़ रहे हैं।"
आशा देवी, एक लाभार्थी दीदी ने बताया कि उन्हें फिशरी एक्सपर्ट्स के माध्यम से प्रशिक्षण मिला है। साथ ही बोरबेल, जाल, पीएच मीटर, फिश सीड, दवाइयाँ, और अन्य जरूरी संसाधन भी उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने बताया, "मछलीपालन से मुझे हर महीने ₹4,000 से ₹6,000 की आमदनी हो रही है, जिससे बच्चों की पढ़ाई और घर की मरम्मत जैसे कार्य संभव हो पा रहे हैं।"
सबीला खातून, जो अब मत्स्य सखी के रूप में काम कर रही हैं, ने कहा, "हमने ₹1 लाख से शुरुआत की थी और अब ₹3 लाख की लागत पर काम कर रही हूं। पहले जीवन में बहुत संघर्ष था, लेकिन मत्स्य सखी बनने के बाद आत्मनिर्भरता का अवसर मिला और अब जीवन खुशहाल हो गया है।"