Delhi Election Result: भ्रष्टाचार को हल्के में नहीं लेते वोटर्स, बीजेपी को हराना है तो साथ आना होगा; दिल्ली चुनाव नतीजों से निकली 8 बड़ी बातें

Delhi Election Results 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को 48 सीटें मिली. यह बहुमत की सीटों (36) से कहीं ज्यादा है. आम आदमी पार्टी जो पिछले दो चुनावों में 60+ सीटें लाकर सत्ता में रही, वह इस बार 22 पर सिमट गई.

Delhi Election Result: भ्रष्टाचार को हल्के में नहीं लेते वोटर्स, बीजेपी को हराना है तो साथ आना होगा; दिल्ली चुनाव नतीजों से निकली 8 बड़ी बातें

दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा को 48 सीटें मिली. यह बहुमत की सीटों (36) से कहीं ज्यादा है. आम आदमी पार्टी जो पिछले दो चुनावों में 60+ सीटें लाकर सत्ता में रही, वह इस बार 22 पर सिमट गई. यह नतीजे अपने आप में बहुत कुछ बयां करते हैं. यह बताते हैं कि वोटर्स कभी भी भ्रष्टाचार को हल्के में नहीं लेते.

साल 2014 में कांग्रेस की लोकसभा चुनाव में करारी हार हो या अब 2025 में AAP की यह गत हो, भ्रष्टाचार एक ऐसा मुद्दा होता है जो सूपड़ा साफ तक करा देता है. बहरहाल, भ्रष्टाचार के इस पॉइंट के अलावा भी अन्य कई बातें हैं जो इस चुनाव में साफ हुई हैं. इनमें यह भी अहम है कि अगर बीजेपी को हराना है तो सभी विपक्षी दलों को साथ आना होगा. दिल्ली नतीजों ने यह भी बता दिया है कि लोकसभा चुनाव के बाद जो मोमेंटम विपक्षी दलों को मिला था, वह अब फिर से कहीं गुम हो गया है.

भ्रष्टाचार को हल्के में नहीं लेते वोटर्स  

अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन जैसे दिग्गजों का हारना बताता है कि जेल जाने से इन नेताओं की छवि खराब हुई. लोगों को कुछ हद तक यह जरूर लगा कि भ्रष्टाचार का विरोध कर अस्तित्व में आने वाली पार्टी के बड़े नेता ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. यानी भ्रष्टाचार हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहता है. अगर किसी नेता पर भष्टाचार के छींटे उड़ते हैं तो उसका असर चुनाव में दिखता है.

चीफ को टारगेट करो, बाकी काम हो जाएगा

बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान पूरे वक्त अपना टारगेट अरविंद केजरीवाल को बनाए रखा. शायद उन्हें पता था कि अगर केजरीवाल की अच्छी छवि को लोगों के दिलो दिमाग से निकाल दें तो आम आदमी पार्टी को हराया जा सकता है. बीजेपी ने लगातार केजरीवाल को 'शीश महल' पर घेरा. बीजेपी अपनी यह बात लोगों तक पहुंचाने में कामयाब रही कि किस तरह खुद को आम आदमी बोलने वाला शख्स जो पहले कभी सादा घर और कार पसंद करता था, वह अब करोड़ों के घर और गाड़ी में घूमता है.

केजरीवाल को भ्रष्टाचारी बताते हुए जेल भेजने का असर भी दिखा. बीजेपी ने लोगों तक अपनी यह बात भी पहुंचाई कि केजरीवाल दिल्ली में काम न कर पाने के सारे ठीकरे केंद्र सरकार पर फोड़ते हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है. बीजेपी अपने पुराने चुनाव अभियानों में भी इसी तरह प्रमुखों को टारगेट करती रही है. राहुल गांधी और अखिलेश यादव इसके उदाहरण हैं. यानी बीजेपी स्पष्ट है कि चीफ को टारगेट करो बाकी काम आराम से हो जाएगा.

बीजेपी को हराना है तो एकजुट होना होगा

70 विधानसभा सीटों वाले इस चुनाव में 13 सीटें ऐसी रही, जहां आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों की हार का अंतर कांग्रेस उम्मीदवारों को मिले वोटों से कम रहा. कांग्रेस और AAP का वोट बैंक लगभग एक ही है. ऐसे में कह सकते हैं कि कांग्रेस के कारण AAP ने यह सीटें गंवाई. अगर दोनों दलों के बीच गठबंधन होता तो इन सीटों पर भाजपा को हराया जा सकता था. ऐसी स्थिति होती तो बीजेपी भी 35 सीट पर रुक जाती और कांग्रेस-आप गठबंधन को भी 35 सीटें मिलती. यानी सरकार बनाने की संभावना इंडिया गठबंधन के पास बनी रहती.

विपक्षी दलों ने खो दिया मोमेंटम

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 240 सीटों पर रोकने के बाद विपक्षी दलों के पास अपनी गाड़ी आगे बढ़ाने का अच्छा मौका था. देश की जनता को पहली बार लगा था कि मोदी को भी रोका जा सकता है. लेकिन इसके बाद हरियाणा और महाराष्ट्र में सरकार बनाने के सुनहरे मौके गंवाना और फिर अब दिल्ली जैसे मजबूत गढ़ में भी सत्ता गंवा देने से यह साफ हो गया कि विपक्षी दलों को जो लय लोकसभा में मिली थी, वह अब पूरी तरह गुम हो चुकी है.

मोदी-शाह की जोड़ी अभी भी कारगर

लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी में ही मोदी और शाह के नेतृत्व को लेकर सवाल उठने लगे थे. लेकिन आम चुनाव के बाद हुए 9 विधानसभा चुनाव में से 7 में एनडीए की जीत के बाद यह तय हो गया कि यह जोड़ी अभी भी कारगर है. लोकसभा के साथ आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में चुनाव हुए और बाद में जम्मू-कश्मीर, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में चुनाव लड़े गए. केवल जम्मू-कश्मीर और झारखंड को छोड़कर हर जगह बीजेपी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सरकार बनाई.

यही होता रहा तो कांग्रेस का कुछ नहीं हो सकता!

पिछले 10 सालों में चुनाव दर चुनाव कांग्रेस की हालत खस्ता हुई है. पार्टी ने अपने गढ़ न केवल गंवाए हैं बल्कि उन जगहों पर उसकी वापसी तक असंभव सी लगने लगी है. जमीनी स्तर पर संगठन का कमजोर होना इसका सबसे बड़ा कारण है. एक समस्या यह भी है कि कांग्रेस की टॉप लीडरशिप शायद चुनाव नतीजों का सही आकलन करने में कहीं न कहीं चूक भी कर रही है.

मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों में बीजेपी हैट्रिक लगा चुकी हैं. इन राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी है लेकिन वह बीजेपी को थोड़ी भी टक्कर देने की स्थिति में नहीं है. दिल्ली में तो पिछले तीन चुनावों में वह एक सीट तक नहीं जीत पाई. लोकसभा 2024 में उसे जरूर अप्रत्याशित सफलता मिली लेकिन शायद वह कांग्रेस की मेहनत नहीं बल्कि साइलेंट वोटिंग का कमाल था. अब कांग्रेस आगे भी इसी तरह का रवैया बनाए रखती है तो पार्टी के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लग सकता है.

फिर से अपने सर्वश्रेष्ठ पर पहुंचे

भारतीय जनता पार्टी साल 2018 में 21 राज्यों में सरकार बनाकर अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन पर पहुंची थी. अब दिल्ली जीतकर एक बार फिर उसने अपने राज्यों की संख्या 21 कर ली है. यह कांग्रेस के सर्वश्रेष्ठ के बराबर है. जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, तब कांग्रेस का राज 21 भारतीय राज्यों में था.

पहली बार दिल्ली एनसीआर के सभी राज्यों में बीजेपी

नेशनल कैपिटल रीजन में जितने राज्य आते हैं, उन सभी में अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. देश में ऐसा पहली बार हुआ है कि एनसीआर में आने वाले सभी राज्यों में एक पार्टी की सरकार हो. दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान एनसीआर में आते हैं. इन सभी राज्यों पर भाजपा की सत्ता है.