अब फेफड़े के कैंसर से नहीं जाएगी जान! ब्रेकथ्रू ब्रेथ टेस्ट से डिटेक्ट करना हुआ आसान
How To Detect Lungs Cancer: पिछले कुछ सालों में भारत समेत दुनियाभर में फेफड़े के कैंसर मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ी है, लेकिन अब इससे जुड़ी अच्छी खबर सामने आ रही है. शोधकर्ताओं का दावा है

पिछले कुछ सालों में भारत समेत दुनियाभर में फेफड़े के कैंसर मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ी है, लेकिन अब इससे जुड़ी अच्छी खबर सामने आ रही है. शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जो फेफड़ों के कैंसर का पता प्रभावी ढ़ंग से लगा पाएगा. इस नए शोध के बाद ऐसा माना जा रहा है कि यह तकनीक आसानी से फेफड़ों के कैंसर को डिटेक्ट कर लेगा. जिससे मरीज की जान बचाई जा सकती है. इस नई तकनीक की खोज चीन और स्पेन के शोधकर्ताओं ने की है. इसके जरिए मेटल लगे सेंसर का इस्तेमाल किया जाएगा.
प्लेटिनम, इडियम और निकेल से बना है नैनोफ्लेक्स
ऐसा दावा किया जा रहा है कि इसमें इस्तेमाल होने वाला सेंसर इंसानी बाल से हजार गुणा पतला है, जिसे नैनोफ्लेक्स के नाम से जाना जाता है. इस नैनोफ्लेक्स को प्लेटिनम, इडियम और निकेल को मिलाकर तैयार किया गया है. साथ ही इस तरह से बनाया गया है कि इंसानी फेफड़े के कैंसर को आसानी से डिटेक्ट कर पाएगा.
यह तकनीक कैसे करेगा काम?
हालांकि, वैज्ञानिक निश्चित नहीं हैं कि शरीर में आइसोप्रीन कहाँ से आता है या क्यों... दुर्लभ परिस्थितियों में कुछ लोग इसे बाहर नहीं निकालते हैं. इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि फेफड़ों के कैंसर के रोगियों की सांस में रसायन का स्तर कैंसर-मुक्त लोगों की तुलना में कम था.
सेंसर किसी व्यक्ति की सांस में आइसोप्रीन को ऐसी सटीकता से माप सकता है जो पहले कभी नहीं देखी गई. इसमें विशेषज्ञों को एक माप के साथ काम करना होता है, जिसे प्रति बिलियन भाग के रूप में जाना जाता है. हालिया शोध में शोधकर्ताओं ने आइसोप्रीन के 2 पीपीबी तक कम स्तर का पता लगाया है, जो 32 साल की समयसीमा से 2 सेकंड को अलग करने जैसा है.
वैज्ञानिकों ने अमेरिकन केमिकल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में 13 सांस के नमूनों का विश्लेषण करने के लिए डिवाइस का उपयोग किया. इस में देखा गया कि फेफड़ों के कैंसर के रोगियों में आइसोप्रीन का स्तर 40 पीपीबी से नीचे चला गया, जबकि कैंसर मुक्त व्यक्तियों में इसका स्तर 60 पीपीबी से अधिक था.