नेपाल में अंतरिम सरकार पर संशय: सेना की सक्रियता और राजनीतिक खींचतान से संकट गहराया

नेपाल में अंतरिम सरकार गठन पर अनिश्चितता बनी हुई है। सेना सक्रिय है लेकिन राजनीतिक दलों में सहमति नहीं बन पा रही। इससे देश की स्थिरता, अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर खतरा मंडरा रहा है।

नेपाल में अंतरिम सरकार पर संशय: सेना की सक्रियता और राजनीतिक खींचतान से संकट गहराया

नेपाल इस समय गहरी राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा है। जेन-जी आंदोलन के दबाव में प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली समेत कई मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है, जिससे सत्ता का शून्य पैदा हो गया है। करीब 70 घंटे बीत जाने के बावजूद अंतरिम सरकार के गठन पर स्थिति साफ नहीं हो पाई है और हालात “दो कदम आगे, तीन कदम पीछे” जैसे प्रतीत हो रहे हैं।

सेना का भरोसा और संवैधानिक बाधा

नेपाली सेना ने देश को भरोसा दिलाया है कि जल्द से जल्द अंतरिम सरकार का गठन होगा और कानून-व्यवस्था पर नियंत्रण पाया जाएगा। हालांकि, संविधान के अनुसार केवल वर्तमान सांसद ही अंतरिम प्रधानमंत्री बन सकते हैं। यह प्रावधान एक बड़ी बाधा बन रहा है और इससे राजनीतिक खींचतान और गहराती जा रही है।

संभावित नामों पर खींचतान

अंतरिम सरकार के नेतृत्व को लेकर दो खेमे बन गए हैं—एक ओर पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का समर्थन है तो दूसरी ओर काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह का। इसी टकराव के चलते अंतरिम सरकार का गठन टलता जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि नेपाल लंबे समय तक राजनीतिक शून्यता में नहीं रह सकता।

दलों और सेना की भूमिका

कम्युनिस्ट यूएमएल और नेपाली कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टियां अंतरिम सरकार में अपनी हिस्सेदारी चाहती हैं, लेकिन यह भी अनिश्चित है कि जेन-जी इसे स्वीकार करेगा या नहीं। दूसरी ओर सेना का रुख साफ है कि भविष्य की सरकार में आंदोलन से जुड़े लोगों को स्पष्ट भूमिका दी जाएगी। सेना हालांकि सैन्य तख्तापलट के खिलाफ है और सिर्फ जल्द समाधान चाहती है।

राजशाही की वापसी पर बहस

राजशाही समर्थक भी मौजूदा संकट में सक्रिय हुए हैं, लेकिन जानकारों का कहना है कि संविधान संशोधन के बिना इसकी वापसी संभव नहीं है और मौजूदा हालात में यह लगभग असंभव है।

अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर असर

लगातार हिंसा और विरोध प्रदर्शनों से नेपाल की अर्थव्यवस्था और पर्यटन उद्योग पर गहरा असर पड़ रहा है। खुफिया एजेंसियां आशंका जता रही हैं कि आंदोलन काठमांडू और प्रमुख शहरों से निकलकर ग्रामीण इलाकों में भी फैल सकता है, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाएगी।

आपातकाल और संवैधानिक विकल्प

अगर राजनीतिक समाधान नहीं निकलता तो राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 273 के तहत आपातकाल की घोषणा करने या अनुच्छेद 76 और 77 के तहत किसी तटस्थ व्यक्ति को नियुक्त करने का विकल्प होगा। हालांकि आपातकाल से हालात और बिगड़ सकते हैं।

नेपाल की मौजूदा स्थिति में सबसे व्यावहारिक विकल्प यही है कि सभी राजनीतिक दल और सेना मिलकर एक सर्वसम्मत उम्मीदवार को अंतरिम प्रमुख चुनें। तभी देश को स्थिरता और लोकतांत्रिक राह पर आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।