UP: कितनी कायम रहेगी यादवों की एकजुटता... जो बिरादरी के हक की बात करेगा, उसकी ओर होगा झुकाव
सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पहला लोकसभा चुनाव होने जा रहा है। मुलायम की पीढ़ी के तमाम यादव नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। कुछ सपा का साथ छोड़ चुके हैं, तो कुछ साथ रहते हुए भी सियासी गुमनामी में हैं।

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पहला लोकसभा चुनाव होने जा रहा है। मुलायम की पीढ़ी के तमाम यादव नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं। कुछ सपा का साथ छोड़ चुके हैं, तो कुछ साथ रहते हुए भी सियासी गुमनामी में हैं।
प्रदेश के सियासी इतिहास पर गौर करें तो यादव वोटबैंक पहले कांग्रेस और फिर जनसंघ के साथ रहा। फिर चौधरी चरण सिंह के साथ गोलबंद हुआ। इनके बाद मुलायम सिंह यादव का आधार वोटबैंक बन गए। सियासी अखाड़े के पहलवान मुलायम सिंह यादव ने अपनी सियासी ताकत बढ़ाने के लिए हर जिले में अपने आधार वोट बैंक का एक बड़ा नेता तैयार किया।
आधार वोटबैंक को सहेजने के साथ ही उन्होंने अन्य प्रयोग शुरू किए। पहले मुस्लिमों को जोड़ा। समाजवादी पार्टी ने एम-वाई (मुस्लिम-यादव) के गठजोड़ से सियासत चमकाई। मुलायम यहीं नहीं रुके। उन्होंने अन्य पिछड़ी जातियों की गोलबंदी भी बढ़ानी शुरू कर दी। पर, सामान्य वर्ग के नेताओं की अनदेखी नहीं होने दी। इस रणनीति के जरिए वह किसी न किसी रूप में या तो सत्ता में बने रहे अथवा मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाई।
वर्ष 2001 की सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में पिछड़े वर्ग के बीच यादव आबादी करीब 19.40 फीसदी है। इनकी एकजुटता सत्ता के समीकरणों को साधने के लिए मजबूत जमीन जैसा है। पर, चुनावी नतीजे खुद-ब-खुद बता देते हैं कि अब हालात बदल गए हैं।
विधानसभा चुनाव के बाद 10 अक्तूबर 2022 को मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया। भाजपा ने यादव वोट बैंक को साधने और पैठ बढ़ाने के लिए मुलायम सिंह को पद्मविभूषण से नवाजा, तो उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया। मोहन यादव तीन बार यूपी आ चुके हैं।
इन दौरों के दौरान उन्होंने खुद को आजमगढ़ निवासी बताया। यही नहीं सुल्तानपुर में ससुराल होना भी बताना नहीं भूले। तीसरी बार 4 मार्च को अयोध्या आए तो कहा कि सैफई परिवार ने पूरे यादव समाज का शोषण किया है। यह सब अनायास ही नहीं है, बल्कि इसके सियासी मायने हैं। भाजपा बखूबी जानती है कि यादव वोटबैंक को तोड़ कर ही वह 50 फीसदी के अधिक वोट का लक्ष्य हासिल कर सकती है। यही वजह है कि वह येनकेन प्रकारेण इस वोटबैंक को भगवा खेमे में लाने में जुटी हुई है।